संत राम रहीम से जुड़े हर रहस्य का होगा पर्दाफाश (भाग 2)

Maharaja Ganga Singh

कहते हैं इंसान महान, अपनी सोच से और अपने कर्मों से बनता है लेकिन अगर इतिहास में नज़र दौड़ाएं तो महान इंसान किसी पुण्य करने वाले कुल में ही जन्म लेता है फिर वो कुल चाहे दुनिया के पैमाने में छोटा हो या बड़ा हो ।

संत जी के पूर्वजों के पास श्री गंगानगर और बीकानेर में हज़ारों एकड़ जमीन थी । बीकानेर के महाराज गंगा सिंह के साथ उनके गहरे संबंध थे । 

संत जी के गाँव के बुजुर्गों के अनुसार वो सारा गाँव संत जी के पूर्वजों ने ही बसाया था और गांव वालों को गरीबी न महसूस हो इसलिए अपनी जमीन में से 1500 एकड़  गांव वालों को दान में दे दी थी ।

 कुछ वर्ष पहले जब संत जी बीकानेर में जमीन खरीदने गए तो पता चला कि वो सारी जमीन उन्ही के पूर्वजों की नाम से है जो उन्होंने किसी नेक मकसद के लिए रखी थी । 

संत जी उस खानदान के एकलौते वारिस हैं इसलिए वो जमीन उन्ही की हुई और अपने पूर्वजों की इच्छा अनुसार संत जी ने वहां डेरा सच्चा सौदा का आश्रम बनवाया जहाँ लाखों लोग आकर अपना नशा छोड़कर अच्छी आदतें सीखते हैं ।

Honorable Sardaar Magghar Singh 
संत जी के पिता सरदार मग्घर सिंह नम्बरदार इतने दरयादिल थे कि अगर उनके नौकर फसल में से कुछ भरी हुई बोरियां चुरा कर ले जाते तो यह कहकर टाल देते कि इन्ही की मेहनत है और अगर ले जाते हैं तो क्या हुआ । नौकर अगर थक जाते तो खुद उनके लिए खाने, पीने की व्यवस्था करते थे ।

दूसरों के दर्द को समझने वाले कुल में जन्म लेने वाले संत जी ने अपने गुरु के एक आदेश पर मात्र 23 साल की उम्र में ही अपना घर त्याग दिया था ।

23 September 1990
जरा अपने दिल पर हाथ रख कर कल्पना कीजिये कि राजाओं जैसे खानदान में 18 साल बाद जन्मी एकलौती संतान जब 23 साल की उम्र में जनहित के लिए अपना घर त्याग दे तो कैसा माहौल होगा । कितना बड़ा दिल होगा उस माँ का और उस पिता का और उस पत्नी का । अगर फिल्म में भी ऐसा दिख जाए तो भी दिल भर आये, ये तो फिर असलियत में था ।

Dera Chief with former chief
देश जानता है, आज एक चाय वाला न जाने कितने लोगों की लाशों पर चल कर जब राजा बनता है तो वो महान है और लेकिन जब एक राजा इसी तरह के चाय वालों को सुधारने के लिए अपना सब कुछ त्याग दे तो दुनिया कैसे भूल जाती है उसके त्याग को ? शायद इसी का नाम कलयुग है ।

इतिहास तो आज तक संतों महापुरषों से भी परीक्षा लेता आया है और महापुरषों ने उसके लिए अपने प्राण भी दिए ।लेकिन गुरु शाह सतनाम जी ने अपने परम शिष्य संत जी से कहा कि इस बार संत की कुर्बानी नहीं होगी । आपको दुनिया के तरीके से ही दुनिया को सुधारना है और एक बब्बर शेर की तरह अपना जीवन जीना है ।

आज जब शेर की दहाड़ बड़े लगी तो नशा माफिया, राजनेताओं और देश के युवाओं को अश्लीलता सिखाने वाले bollywood की पतलून ठीली हो गयी ।
उन्हें लगता है कि शेर को पकड़ कर उसकी जगह राज कर लोगे । उन्हें फिर याद दिला दूँ कि इस बार संत की कुर्बानी नहीं होगी ।

कहते हैं वो माँ पहले ही मर गयी जो ऐसे औलाद को जन्म देने की सोच भी ले ।


संत जी की सोच कैसी है आगे चर्चा जारी रखेंगे ।




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