कौन हैं संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसा ? Part 4
धर्म
क्या है ?
एक संगठन
? एक समुदाय ? एक समाज ? एक आस्था ? एक विचारधारा ? एक संस्कृति ? एक नियमावली ? एक
अनुशासन ? एक पाखंड ? एक दिखावा ? एक छलावा ? एक व्यापार ? एक हथियार ? एक आतंकवाद
? या फिर मात्र एक भ्रम जो सिर्फ खुद को संतुष्ट करने के लिए है ?
विश्व
में अधिकाँश लोग किसी न किसी धर्म की पहचान रखते हैं । देश के कानून के विपरीत, धर्म
की कोई सरहद नहीं है । धर्म द्वारा जुड़े हुए लोगों को कानून से अलग नहीं किया जा सकता
लेकिन कानून द्वारा जुड़े हुए लोगों को धर्म के नाम पर अलग करना बहुत आसान है ।
धर्म
को चाहे कुछ भी कहो लेकिन इसका सबसे बेहतरीन पहलू यह है कि यह अनजान लोगों को आपस में
जोड़ने का कार्य करता है । समस्या तब आती है जब यह समझना मुश्किल हो जाता है कि धर्म
के नाम पर एकजुट हुए व्यक्तियों का इरादा नेक है या नहीं और उससे बड़ी समस्या यह है
कि इस बात का निर्णय कौन करे कि धर्म के नाम पर किया जाने वाला कार्य सही है या गलत
?

यहाँ
एक सवाल मेरी तरफ से है कि जब धर्म द्वारा लोगों को बेहतर तरीके से जोड़ा जा सकता है
तो किसी भी देश कि सरकार में या संयुक्त राष्ट्र में धर्म ज्ञान को लेकर कोई विभाग
क्यों नहीं बनाया जाता ?
कानून
क्या है, इसकी परिभाषा देने के लिए एक न्यायधीश को 25-30 साल की कड़ी मेहनत करनी पड़ती
है, लेकिन धर्म जिसके आगे कानून बहुत बोना है, उसकी परिभाषा देने के लिए इंसान को सिर्फ
थोड़ी भाषा सीखनी है, कपडे बदलने है, दाढ़ी मूछ को जचाना है और थोड़ा सा नाटक करना सीखना
है ।
जब कोई
संत राम रहीम जी जैसा धर्म के नाम पर लड़ रहे लोगों को सभी धर्मों की समानता दिखा कर
जोड़ता है, तो सत्ता धारियों को जनता के समझदार होने का खतरा सताने लगता है । नतीजा
आप सब के सामने है । तरस तो उन लोगों पर आता है जो चंद पैसों के लिए लाखों लोगों की
खुशियां छीन लेते हैं ।
किसी
ने सही ही कहा है इंसान फैसले सुना सकता है लेकिन न्याय तो सिर्फ ईश्वर ही देता है
। समझ में नहीं आता कि ईश्वर के न्याय में इंसान दुखी हो या खुश हो क्यूंकि दोनों ही
स्थिति में नुक्सान तो मानव जाती का ही होता है ।
शायद
यही वजह है कि ईश्वर न्याय में देर करता है, क्यूंकि वो भी चाहता है कि इंसान खुद अपनी
गलती मान ले और उसे कुछ करना ही न पड़े ।
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