कौन हैं संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसा ? Part 2
सवालों के साथ ही शुरुआत करते हैं ।

लेकिन क्यों ?
कौन थे ये महापुरुष ? क्यों आये थे ये धरती पर
?
- क्यों इन सब के होते हुए भी आज तक बुराई ख़त्म होने की बजाय बढ़ती जा रही है ?
- क्यों इन लोगों ने अलग अलग धर्म बनाये ?
- धर्म इंसान को जोड़ने का काम करता है या तोड़ने का ?
- अगर अच्छाई के इतने स्त्रोत है तो बुराई को ताकत कहाँ से मिलती है ?
- क्या सही है क्या गलत इसकी परिभाषा कौन तय करता है ?
- भगवान् कौन है, कितने हैं, कहाँ है, कैसे मिलेगा, क्यों मिलेगा, इत्यादि सवाल है ।
आज के आधुनिक मानव को धर्म ग्रंथों के नाम भी नहीं पता होते,
ज्ञान तो दूर की बात है । आज का आधुनिक मानव जल्दी से जल्दी बड़ा आदमी बनना चाहता है,
नाम कमाना चाहता है, अमीर बनना चाहता है, लेकिन धर्म शास्त्र का ज्ञान लेना नहीं चाहता
।
उसे उस धर्म का ज्ञान उसकी दिनचर्या में कैसे मिले ? उदहारण के तौर पर
- फिल्म देखना पाप है या पुण्य; यह किस ग्रन्थ में लिखा है ?
- फिल्म में अश्लीलता किस हद तक देखी जाए जो पाप नहीं कहलाएगी ?
- फेसबुक पर चैट करना पाप है या पुण्य; यह किस ग्रन्थ में लिखा है ?
- लाइव इन रिलेशन में रहना पाप है या पुण्य, तलाक देना पाप है या पुण्य ?
- शराब पीना हिन्दू, इस्लाम में पाप है लेकिन ईसाई इसे पाप नहीं मानते, क्यों ?
- एक समय था स्त्री सती थी जिसे छूना भी पाप माना जाता था लेकिन आज इसे पाप की श्रेणी में देखें तो पुण्य आत्मा कौन है ?
सवाल और बहुत सारे हैं लेकिन इन सब सवालों का मेरे पास एक ही
जवाब है कि समय के साथ युग बदलते गए, और हर युग में बुराई की ताकत पहले से अधिक ही
हुई । जिस पाप को रावण जैसे महाबली ने करके अपना सब कुछ गवा लिया वो पाप तो आज हर गली
कूचे में हर रोज ही होता है । जब उस रावण को मारने के लिए रामचंद्र जी को धरती पर आना
पड़ा था तो आज रामचंद्र जी हर गली में घूमते रावणों से बचाने क्यों नहीं आ जाते धरती
पर ?
वास्तिविकता यह है या यूँ कहें कि यही कलयुग का प्रभाव है कि
आज जब कोई सीता माता जैसे सती ही नहीं है तो उसे बचाने के लिए राम की जरुरत किसी को
महसूस ही नहीं होती । आज का मनुष्य अपनी बुद्धि को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है और ऐसे
में शास्त्रों का एक श्लोक याद आता है
चाखा चाहे प्रेम रस, राखा चाहे मान
एक म्यान में दो खडग, देखा सुना न कान

चर्चा को आगे बढ़ाएंगे लेकिन चर्चा में तर्क देने से पहले उसके
सारे दृष्टिकोण आपके सामने रखना चाहता हूँ तांकि आप भी समझें कि ईश्वर तो हमारे साथ
हैं लेकिन हमने ही उसे देख नहीं पा रहे ।
आप अपने सवालों में कुछ भी पूछिए । चर्चा को हम उतना विस्तार
में ले जाते जाएंगे ।
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